जननी जगन्मात की प्रखर मातृभक्ति की सुप्त भावना जगाने हम चले || Rss Geet ||
जननी जगन्मात की
जननी जगन्मात की प्रखर मातृभक्ति की
सुप्त भावना जगाने हम चले॥
सदैव से महान जो सदैव ही महान हो
कोटि-कोटि कंठ से अखण्ड वंद्य गान हो
मातृ-भू की अमरता समृध्दि और अखंण्डता की
शुभ्र कामना जगाने हम चले
जननी जगन्मात की ॥१॥
एक माँ के पूत एक धर्म एक देश है
फिर भी प्रे के स्थान ईर्ष्या व व्देष है
सुबन्धुता व स्नेह की सुकार्य और सुध्येय की
स्वच्छ भावना जगाने हम चले
जननी जगन्मात की ॥२॥
प्रान्त भेद भाषा – अभेद भी अनेक हैं
छिद्र-छिद्र राष्ट्र का शरीर देख खेद है
अनेकता व भेदता से एकता अभेदता की
श्रेष्ठ भावना जगाने हम चले
जननी जगन्मात की ॥३॥
व्यक्ति-व्यक्ति के हृदय समष्टि भाव को जगा
सकामता व स्वार्थता के हेय भाव को मिटा
परहिता। सुखा। म। निज के हित-सुखा। को देखने की
श्रेष्ठ चाह को जगाने हम चले
जननी जगन्मात की ४॥
निज सुखा। की एक ओर छोड़ करके लालसा
चल पड़े हैं मातृ -भू-उत्थान का ले रास्ता
श्रम से तप से त्याग से संघ-दीप जगमगा
महान चेतना जगाने हम चले
जननी जगन्मात की ॥५॥