जिसने मरना सीखा लिया है, जीने का अधिकार उसी को जो काँटा। के पथ पर आया, फूला। का उपहार उसी को है । ॥ धृ. ॥
जिसने गीत सजाये अपने, तलवारा। के झन-झन स्वर पर जिसने विप्लव राग अलापे, रिमझिम गोली के वर्षण पर जो बलिदाना। का प्रेी है, जगती का प्यार उसी को ॥ १ ॥
हँस-हँस कर इक मस्ती लेकर, जिसने सीखा है बलि होना अपनी पीड़ा पर मुस्काना, औरा। के कष्टा। पर रोना जिसने सहना सीख लिया है, संकट है त्यौहार उसी को ॥ २ ॥
दुर्गता लख बीहड़ पथ की, जो न कभी भी रुका कहीं पर अनगिनती आघात सहे पर, जो न कभी भी झुका कहीं पर झुका रहा है मस्तक अपना, सारा संसार उसी को ॥ ३ ॥
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