शुद्ध सात्विक प्रे अपने कार्य का आधार है शुद्ध सात्विक प्रे अपने कार्य का आधार है ॥धृ॥
प्रे जो केवल समर्पण भाव को ही जानता है और उसमे ही स्वयम की धन्यता बस मानता है
दिव्य ऐसे प्रे मे ईेशर स्वयम साकार है ॥१॥ विेश जननी ने किया वात्सल्य से पालन हमारा है कृपा इसकी मिला है प्राण तन जीवन हमारा
भक्ति से हम हो समर्पित बस यही अधिकार है ॥२॥ जाती भाषा प्रान्त आदी वर्ग भेदा। को मिटाने दूर अर्थाभाव करने तम अविद्या को हटाने
नित्य ज्योतिर्मय हमारा हृदय स्नेहागार है ॥३॥ कोटि आँखो से निरन्तर आज आँसू बह रहे है आज अनगिन बन्धु दु:सह यातनाए सह रहे हैं
दुख हरे सुख दे सभी को एक यह आचार है ॥४॥
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